Laxmi Chalisa is a revered devotional hymn dedicated to Goddess Laxmi, the deity of wealth and prosperity. This 40-verse prayer is recited by devotees to seek her blessings and grace. For those who are unfamiliar with the term, ‘Chalisa’ denotes forty, and this prayer comprises forty verses in praise of the goddess.
लक्ष्मी चालीसा धन और समृद्धि की देवी देवी लक्ष्मी को समर्पित एक श्रद्धेय भक्ति भजन है। यह 40-पद्य वाली प्रार्थना भक्तों द्वारा उनका आशीर्वाद और कृपा पाने के लिए पढ़ी जाती है। जो लोग इस शब्द से अपरिचित हैं, उनके लिए ‘चालीसा’ का अर्थ चालीस है, और इस प्रार्थना में देवी की स्तुति में चालीस छंद शामिल हैं।
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The Laxmi Chalisa lyrics are penned with deep devotion, capturing the essence of the goddess’s magnificence. These lyrics, often sung during religious ceremonies, resonate with the hearts of the devotees, creating a spiritual ambiance.
लक्ष्मी चालीसा के बोल गहरी भक्ति के साथ लिखे गए हैं, जो देवी की महिमा का सार दर्शाते हैं। अक्सर धार्मिक समारोहों के दौरान गाए जाने वाले ये गीत भक्तों के दिलों में गूंजते हैं और आध्यात्मिक माहौल बनाते हैं।
While translations are available in various languages, the Laxmi Chalisa lyrics in Hindi capture the original essence and emotion of the prayer. Reciting the chalisa in Hindi allows devotees to connect deeply with its profound meanings.
लक्ष्मी चालीसा का भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध हैं, हिंदी में लक्ष्मी चालीसा के बोल प्रार्थना के मूल सार और भावना को दर्शाते हैं। हिंदी में चालीसा का पाठ करने से भक्तों को इसके गहन अर्थों से गहराई से जुड़ने का मौका मिलता है।
The Laxmi Chalisa in Hindi is more than just a prayer; it’s a spiritual journey. Each verse narrates the tales of Goddess Laxmi’s benevolence, her role in the pantheon, and her blessings upon her devotees.
लक्ष्मी चालीसा सिर्फ एक प्रार्थना से कहीं अधिक है; यह एक आध्यात्मिक यात्रा है. प्रत्येक श्लोक देवी लक्ष्मी की उदारता, देवालय में उनकी भूमिका और उनके भक्तों पर उनके आशीर्वाद की कहानियों का वर्णन करता है।
The prefixes ‘Shri’ and ‘Shree’ before Laxmi Chalisa are titles of respect. They denote the high regard and reverence held for Goddess Laxmi by her devotees.
लक्ष्मी चालीसा के पहले ‘श्री’ उपसर्ग आदरसूचक उपाधियाँ हैं। वे देवी लक्ष्मी के प्रति उनके भक्तों द्वारा रखे गए उच्च सम्मान और श्रद्धा को दर्शाते हैं।
।। दोहा ।।
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
।। सोरठा ।।
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
।। चौपाई ।।
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥
श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
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