Durga Chalisa

Shree Durga Chalisa Meaning in Hindi | श्री दुर्गा चालीसा का हिंदी में अर्थ

Shree Durga Chalisa with meaning in hindi : दुर्गा चालीसा का अर्थ हिंदी में: श्री दुर्गा चालीसा का पाठ, वह अमृत है, जो भक्तों को अपनी माँ की गोदी तक पहुंचाता है। नवरात्रि के पावन पर्व पर, जब चालीसा के शब्द कंपित होते हैं, तो आत्मा के कोने-कोने में माँ जगदंबा की कृपा का अनुभूति होती है। माँ दुर्गा, जो अपने संतानों का सदा कल्याण करती हैं, उन्हें जगतजननी माँ कल्याणी के नाम से संबोधित किया जाता है।

इस दुर्गा चालीसा में छिपा सुख-शांति का राज है, जिसे श्रद्धाभाव से निरंतर पाठ करने वाला भक्त समझता है। वह बाधाओं की रात से होकर निकलता है, और उसे जीवन की वह सुखमय सुबह मिलती है, जिसमें सिर्फ आनंद और शांति का वास है। ऐसी है माँ दुर्गा की कृपा, जो अपने भक्तों को उनकी आराध्य देवी के करीब ले जाती है।

जय माँ दुर्गा ।

Durga Chalisa Meaning in Hindi: माँ दुर्गा चालीसा पाठ का हिन्दी अनुवाद

॥ चौपाई॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥

अर्थ :  सुख की संजीवनी, माँ दुर्गा को मेरा सादर प्रणाम, दुखों की अंधेरे को दूर करनेवाली, अद्भुत अम्बा माँ को मेरा अंतःपूर्ण नमन।

निराकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥

अर्थ :  आपकी ज्योति का उज्ज्वल प्रकाश अथाह है,जो पृथ्वी, आकाश और पाताल के हर कोने में मोहक रौशनी बिखेर रहा है।

शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटी विकराला॥

अर्थ :  आपका मस्तक चंदनी की ओड़ में चन्द्रमा की तरह चमकता है, और मुख समुद्र की गहराई जैसा विशाल। नेत्र जैसे रक्तिम पुष्प की अधीर आभा हो, और भृकुटियाँ वीरता और शक्ति की मूरत हैं।

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

अर्थ :  माँ दुर्गा की इस मूरत में एक अद्वितीय सौंदर्य बहता है, जिसका दर्शन ही भक्तों के ह्रदय को परमानंद की गहराईयों में डूबो देता है।

तुम संसार शक्ति लय कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अर्थ :  संसार के सभी शक्तियों को आपने अपने में समेटा हुआ है। और जीवन की धारा को संचालित रखने हेतु, अन्न और धन का अमूल्य उपहार प्रदान किया है।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

अर्थ :  अन्नपूर्णा की मूरत में विराजती, आप ही संसार की धारा को संचालित करती हैं, और आदि सुंदरी बाला के अद्वितीय स्वरूप में भी, वही आप ही सजीव होती हैं।

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

अर्थ :  प्रलय की घड़ी में आप ही विश्व की समाप्ति की मूरत बनती हैं, और शंकर के प्राणप्रिय गौरी-पार्वती के अद्वितीय स्वरूप में भी, आप ही विराजमान होती हैं।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

अर्थ :  शिव और सभी योगी आपकी महिमा का गान करते हैं, ब्रह्मा और विष्णु सहित, सभी दिव्य देवता आप में ही अनन्त समाधि ढूंढते हैं।

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

अर्थ : माँ सरस्वती के दिव्य स्वरूप में प्रकट होकर, आपने ऋषि-मुनियों को ज्ञान की अमृत दी और उन्हें संसार की भंवर से बचाया।

धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
प्रकट हुई फाड़कर खम्बा॥

अर्थ :  हे अम्बे माँ! श्री नरसिंह के अद्वितीय स्वरूप में आप ही प्रकट हुई थीं, और खम्भे को चीर उस अद्वितीय जगह से प्रकाशित हुई थीं।

रक्षा करि प्रहलाद बचायो।
हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो॥

अर्थ :  भक्त प्रहलाद की संरक्षणा करते हुए, आपने हिरण्यकश्यप को आपके पवित्र हाथों से मृत्यु देकर, स्वर्ग की देन दी।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

अर्थ :  लक्ष्मीजी के दिव्य स्वरूप में उत्पन्न होकर, आप ही क्षीरसागर में श्री नारायण के संग शेषशय्या पर अद्वितीय रूप में विराजती हैं।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

अर्थ :  क्षीरसागर में भगवान विष्णु के संग चंचल लहरों पर विराजमान हो, हे कृपानिधान देवी! मेरे मन की अधूरी आशाओं को साकार कर दो।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

अर्थ :  हिंगलाज में विराजमान देवी भवानी की रूप में आप ही अद्वितीय रौंगते लेकर बसी हैं। आपकी अथाह महिमा को शब्दों में कैसे समेटा जाए।

मातंगी धूमावति माता।
भुवनेश्वरि बगला सुखदाता॥

अर्थ :  हे मातंगी और धूमावाती की स्वरूपिणी, आप ही वह अद्वितीय शक्ति हैं। भुवनेश्वरी और बगलामुखी के सुखदायिनी स्वरूप में भी, आप ही मेरे मन की आनंद की ज्योति हैं।

श्री भैरव तारा जग तारिणि।
छिन्न भाल भव दुख निवारिणि॥

अर्थ :  हे श्री भैरवी और तारादेवी, आप ही संसार की तारणी हैं। छिन्नमस्ता स्वरूप में, आप ही भवसागर के जटिल कष्टों को दूर हटाने वाली हैं।

केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥

अर्थ :  हे भवानी! जिनकी सवारी शेर है, ऐसी महारानी का हनुमान जैसे महावीर स्वागत करते हैं।

कर में खप्पर खड्ग विराजे।
जाको देख काल डर भाजे॥

अर्थ :  जब आपके हाथ में काल के समान खप्पर और खड्ग विराजता है, तो काल स्वयं उस दर्शन से कंपित हो उठता है।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

अर्थ :  जब आप अपने हाथ में त्रिशूल और महाप्रभावशाली अस्त्र-शस्त्र सजाते हैं, तब शत्रु का हृदय भय से धड़कने लगता है।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहूं लोक में डंका बाजत॥

अर्थ :  नगरकोट की दिव्य देवी के आकार में आप ही सम्राट्नी हैं। तीनों भुवनों में आपकी महिमा का गूंज सुनाई देता है।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥

अर्थ :  हे जगतारिणी मां! आपने अंधेरे के प्रतीक शुम्भ-निशुम्भ को नष्ट किया और रक्तबीज सहित शंख राक्षस को भी समाप्त कर दिया।

महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

अर्थ :  जब अहंकार से भरा दैत्यराज महिषासुर के पापों की भारी बोझ से पृथ्वी अधीर हो गई।

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

अर्थ :  तब आपने काली के उग्र रूप में प्रकट होकर उस पापी के सैनिकों सहित उसे धरती से मिटा दिया।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अर्थ :  हे माँ! जब-जब संतों के ऊपर विपदाएं आईं, तब-तब आपने अपने भक्तों के उदार हृदय से सहायता दी है।

अमरपुरी अरु बासव लोका।
तव महिमा सब रहें अशोका॥

अर्थ :  हे माँ! जब तक यह अमरपुरी और सभी लोक अस्तित्व में हैं, तब तक आपकी महिमा से सब शोकरहित रहेंगे।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥

अर्थ :  हे माँ! श्री ज्वालाजी में भी आपकी ज्योति जल रही है, नर-नारी सदा आपकी पूजा करते हैं, उनके हृदय में आपकी भक्ति करते हैं।

प्रेम भक्ति से जो यश गावे।
दुख दारिद्र निकट नहिं आवे॥

अर्थ : प्रेम, श्रद्धा और भक्ति से सजी व्यक्ति आपका गुणगान करता है, उसके दरवाजे पर दुःख और दरिद्रता का अवास नहीं होता।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई
जन्म-मरण ताको छूटि जाई॥

अर्थ :  जो प्राणी निष्ठापूर्वक आपका ध्यान करता है, उसका जन्म-मरण के बंधन से निश्चित ही मुक्ति का रास्ता खुल जाता है। आपकी कृपा से वह अपने आँसुओं को खुशियों में बहा देता है, उसके जीवन की नैया आपके प्रेम के सौंदर्य से आदर्श तट पर खोल जाती है।

जोगी सुर मुनि क़हत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

अर्थ :  योगी, साधु, देवता और मुनिजन, आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है, ऐसे वे पुकारते हैं और गहराई से बताते हैं। आपकी महिमा अतुलनीय है, जैसे अनंत समुद्र में विलीन हुए सुरभि जल की खुशबू भी नए स्वर्ग को प्रकट कर देती है।

शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

अर्थ :  शंकराचार्यजी ने आचारज के तप से काम, क्रोध, मद, लोभ आदि को विजयी किया। उनकी तपस्या ने रचा वीरगाथा, जैसे अनगिनत तारों ने संध्याकाल में आसमान को सजाया है।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

अर्थ :  उन्होंने शंकर जी को नित्य ध्यान में रखा, पर तुम्हारी याद को, कभी भी अपने ह्रदय में बसाया नहीं।

शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछतायो॥

अर्थ :  आपकी शक्ति की गहराई को वह समझ न सके और जब उनकी ताकत विमुक्त हुई, तभी उनका ह्रदय खोया-खोया संवेदना में डूब गया।”

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

अर्थ :  आपकी शरण में आकर, वह आपकी महिमा के गीत में लीन हो गए, ‘जय जय जगदम्बा भवानी’ की ध्वनि से उनका ह्रदय गूंज उठा।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

अर्थ :  हे आदिशक्ति जगदम्बा! जब आप प्रसन्न हुई, तो उनकी शक्ति को लौटाने में आपने विलम्ब नहीं किया।

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुख मेरो॥

अर्थ :  हे जगदम्बा माता! मैं चारों ओर से संकटों में घिरा हूँ। इन दुखों को दूर करने वाला, आपके सिवा कौन हो सकता है?

आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपु मुरख मोही डरपावे॥

अर्थ :  हे माँ! आशा और तृष्णा के तूफान मुझे बार-बार झकझोरते हैं। मोह, अहंभाव, कामना, क्रोध और जलन के उस दुःखद रास में मेरा मन भटकता है।

शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

अर्थ :  हे जगदम्बा भवानी! मेरी सम्पूर्ण ध्यान आप में लीन होता है। कृपया मेरे विरोधियों को दूर भगाएँ।

करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥

अर्थ :  हे करुणारस धारिणी अम्बा! मुझ पर अपनी कृपा की निरंतर झलक दिखाएं और ऋद्धि-सिद्धियों से मेरे जीवन को संजीवनी प्रदान करें।

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ॥

अर्थ :  हे माँ! मेरे प्रत्येक श्वास में आपकी दयालुता का संग हो, और जब तक मेरे होठ चलें, वह आपकी महिमा की गाथा को सभी तक पहुंचाएं।

दुर्गा चालीसा जो नित गावै।
सब सुख भोग परम पद पावै॥

अर्थ :  जिस भक्त ने प्रेम और श्रद्धा से दुर्गा चालीसा का पाठ किया, वह सभी सुखों की धारा में बहते हुए, अंततः परम ऊंचाई प्राप्त करता है।

देविदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

अर्थ :  हे जगत की जननी जगदम्बा! हे कृपाशलिनी भवानी! ‘देविदास’ को अपने अद्भुत शरण में स्वीकार कर, उस पर अपार अनुग्रह बरसाएं।

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

वीर शक्तिशाली माँ दुर्गा के चालीसा का पाठ वह विशेष समर्पण है, जो हमारे जीवन को शक्ति, आशा, और धर्म की दिशा देता है।

श्री दुर्गा चालीसा का पाठ

श्री दुर्गा माँ की वंदना

माँ दुर्गा, जो ब्रह्माण्ड की सर्वशक्तिमान रचनाकार हैं, उनकी वंदना से ही शुरुआत होती है। उनके अनन्त रूपों और वीरता की जैकार हम सभी को प्रेरित करती है।

दुर्गा चालीसा का महत्व

चालीसा का पाठ एक खास तरीके से हमारे दिल और आत्मा को छू लेता है। हर चौपाई अपनी विशेषताओं के साथ हमें संकटों से बचाने का मार्ग दर्शित करती है।

दुर्गा माँ का आशीर्वाद

उनकी कृपा से ही संसार का संचार चलता है। वे ही हमें शक्ति देती हैं जीवन के संघर्ष में सफलता पाने की।

निष्कर्ष

श्री दुर्गा चालीसा का पाठ वह अनुपम यात्रा है, जो हमें हमारी शक्तियों का अहसास कराता है और जीवन के संघर्ष में हमें नया दिशा देता है।

FAQs

  • दुर्गा चालीसा क्या है?
    • दुर्गा चालीसा शक्ति, धर्म, और वीरता की प्रतीक माँ दुर्गा की 40 चौपाइयों की स्तुति है।
  • इसे पढ़ने के क्या लाभ होते हैं?
    • इसे पढ़ने से आपकी आत्मा में शक्ति आती है और जीवन के संघर्ष में सामर्थ्य मिलता है।
  • कैसे पढ़ें दुर्गा चालीसा?
    • इसे पढ़ने के लिए विशेष नियम नहीं हैं, आप भक्ति और श्रद्धा के साथ इसे कहीं भी पढ़ सकते हैं।
  • क्या हर रोज पढ़ना चाहिए?
    • जी हां, अगर आप हर रोज पढ़ते हैं, तो आपको जीवन में आत्मिक शांति और शक्ति मिलेगी।
  • क्या इसे किसी विशेष समय पर पढ़ना चाहिए?
    • विशेष समय की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सुबह का समय सबसे अच्छा माना जाता है।

हनुमान चालीसा का अर्थ जानने के लिए यहां क्लिक करें

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भक्त

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