Shree Shani Chalisa: शनि चालीसा शनिदेव की स्तुति का एक महत्वपूर्ण गीत है। इसे पढ़ने से व्यक्ति को शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन में सुख-शांति आती है। विशेष रूप से शनिवार के दिन इसे पढ़ना अधिक शुभ माना जाता है। आप इसे मंदिर में, पीपल के पेड़ के नीचे या अपने घर में भी पढ़ सकते हैं।
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
अर्थ: भगवान श्री गणेश, पार्वती माता के पुत्र, आपकी विजयी हो। आप महान कल्याणकारी हैं, सभी पर अपनी दया बरसाते हैं, दीन-दुखित लोगों के दुखों को हरते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि से आवृत करते हैं। हे भगवान शनिदेव जी, आपकी जय हो। हे प्रभु, हमारी प्रार्थनाएँ सुनें, हे रविपुत्र, हमें अपनी कृपा से आशीर्वादित करें और अपने भक्तों की रक्षा करें।
॥ चौपाई ॥
जयति-जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै। हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
अर्थ: हे दयालु श्री शनिदेव महाराज, आपकी विजय हो, आप हमेशा भक्तों की रक्षा करने वाले हैं, उनके पालक और संरक्षक हैं। आप श्याम वर्ण से युक्त हैं और आपकी चार भुजाएं अद्भुतता से युक्त हैं। आपके मस्तक पर चमकते हुए रत्नों से भरे मुकुट आपकी महिमा को और भी बढ़ाते हैं। आपका विशाल मस्तक आकर्षक है, आपकी दृष्टि सदैव विशेष रूप से दिखती है। (शनिदेव को यह वरदान प्राप्त हुआ था कि उनकी दृष्टि से जिसका संपर्क होगा, उसका अनिष्ट होगा, इसलिए वे हमेशा आलिंगन के साथ देखते हैं ताकि उनकी सीधी दृष्टि से किसी का हानि नहीं हो)। आपकी भृकुटी भी भयंकर और विकराल दिखती है। आपके कानों में सुने के कुंडल चमकते हैं और आपकी छाती पर मोतियों और मणियों का हार आपकी गरिमा को और भी बढ़ाता है। आपके हाथ में गदा, त्रिशूल और कुठार होने से आप पल में ही शत्रुओं का संहार कर देते हैं।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन। यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा। भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं। रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत। तृणहंू को पर्वत करि डारत।।
अर्थ: पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दु:ख भंजन, सौरी, मंद, शनि – ये आपके दस नाम हैं। हे सूर्यपुत्र, आपके चरणों में सभी कार्यों की सिद्धि की प्रार्थना की जाती है। क्योंकि जिस पर आपकी कृपा बरसती है, वह तत्काल ही धन्य हो जाता है, आपके आशीर्वाद से वह राजा की तरह महत्वपूर्ण हो जाता है। पहाड़ की भाँति बड़ी समस्याएँ भी उसके लिए छोटी हो जाती हैं, जिस पर आपकी प्रसन्नता है। लेकिन जिसके परे आपकी कृपा नहीं है, वह छोटी सी मुश्किल भी असंभव साबित हो सकती है।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा। कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई। मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा। मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा। चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ। तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो। तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
अर्थ: हे प्रभु, आपकी पकी दशा के चलते ही भगवान श्री राम को वनवास का दुःख झेलना पड़ा था। आपके प्रभाव से ही केकैयी ने उस दुर्भग्यपूर्ण निर्णय को लिया, जिससे धरती पर दुःख के बादल छाए रहे। आपके प्रभाव से ही वन में मायावी मृग ने अपनी विशेषता छिपाई, माता सीता ने उनकी पहचान नहीं की, और उन्हें अपनी हालत का आभास नहीं हो सका, जिनसे अपनापन में ही उनका हरण हो गया। आपकी शक्तियों से ही लक्ष्मण की जानों पर संकट आया, जिसने सृष्टि को कांप दिया और उसे आपकी उपस्थिति की प्रतीक्षा में जलने लगा। आपके प्रभाव से ही रावण ने अपने बुद्धिहीन कृत्यों में बढ़ई की, उन्होंने अपनी भ्रष्ट सोच से श्री राम के प्रति द्वेष बढ़ाया। आपकी दृष्टि के कारण ही बजरंग बलि हनुमान की शक्तियों का संचय बड़ा, और उनका महान कार्य लंका की नाश करने में साक्षात्कार हुआ। आपकी आवाज के प्रभाव से ही राजा विक्रमादित्य का सफर वनों में विपरीत दिशा में बदल गया, उन्हें नीरस्त किया गया और अपराधियों के आरोप में उन्हें सजा सुनाई गई। आपके प्रभाव से ही विक्रमादित्य ने अपने अधिकार को खोकर तेली के घर में कोल्हू चलाने की परिस्थिति में पड़ने को तैयार होना पड़ा। लेकिन जब उन्होंने आपकी दया की गुहार की, आप प्रसन्न हो गए और फिर से उन्हें सुख-समृद्धि से युक्त कर दिया।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई। पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी। बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी। युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
अर्थ: आपकी दिव्य स्थिति से ही राजा हरिश्चंद्र की पत्नी को बाजार में बेच दिया गया, उन्हें खुद को भी डोम के घर में पानी भरने का काम करना पड़ा। उसी तरह, राजा नल और रानी दयमंती को भी आपकी स्थिति के कारण कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी, आपकी दशा से ही उनकी उस पूर्वीत मछली ने पुनः जल में कूद जाने का फैसला लिया और राजा नल को अपनी भूख का सामना करना पड़ा। जब आपकी प्राणीय वायुओं पर प्रभाव डाला, तो माता पार्वती को हवन कुंड में कूदकर अपना जीवन त्यागना पड़ा। आपके क्रोध के कारण ही भगवान शंकर के सिर को धरती से अलग करके आकाश में उड़ना पड़ा। पांडवों पर आपकी दशा पड़ने पर द्रौपदी केवल वस्त्रहीन नहीं होने से बची। आपके प्रभाव से कौरवों की बुद्धि मोहित हो गई, जिससे महाभारत का युद्ध आयोजित हुआ। आपकी कुटिल दृष्टि ने सूर्यदेव को भी नहीं बख्शा, उन्हें अपने मुख में लिए और पाताल लोक में ले गए। देवताओं की अनगिनत विनती के बाद भी, आपने अपनी क्रोधमय दृष्टि के कारण सूर्यदेव को आजाद किया।
वाहन प्रभु के सात सुजाना। गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी।।
अर्थ: हे प्रभु, आपके सात वाहन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर – आपके आने वाले फलों की गणना भी इन वाहनों के आधार पर होती है। आपके हाथी पर सवार होकर आने पर घर में लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। घोड़े पर सवार होकर आने पर सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है। जब आप गधे पर सवार होते हैं, तो कामों में अड़चनें आ सकती हैं, वहीं जब आप शेर पर सवार होकर आते हैं, तो समाज में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, आप उसे उच्च दर्जा और प्रसिद्धि प्रदान करते हैं। जब आपकी सवारी सियार पर होती है, तो आपकी बुद्धि पर असर पड़ता है और यदि आपका वाहन हिरण हो, तो शारीरिक बीमारियों का संकेत होता है जो खतरनाक हो सकती है। हे प्रभु, जब आप कुत्ते के साथ आते हैं, तो यह बड़ी चोरी की संभावना का संकेत हो सकता है। इसी तरह, आपके पादों के आधार पर भी सोना, चांदी, तांबा और लोहे जैसी चार प्रकार की धातुएं आती हैं। लोहे के पादों पर आने पर धन, समाज या संपत्ति में हानि का संकेत हो सकता है। चांदी और तांबे के पादों पर आने पर आमतौर पर शुभ होता है, लेकिन सोने के पादों में आने पर आपके आगमन से सभी प्रकार के सुख और कल्याण प्राप्त होते हैं।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।
अर्थ: जिनके मन में इस शनि चरित्र की महिमा बस जाती है, वे हमेशा आपके क्रोध का सामना करने से बचेंगे, और आपकी दशा उन्हें तकलीफ नहीं पहुँचाएगी। उन्हें भगवान शनिदेव महाराज की अद्भुत लीलाओं का अनुभव होगा और वे उनके शत्रुओं को कमजोर कर देंगे। जो भी योग्य और ज्ञानी पंडित को बुलाकर विधि और नियमों के अनुसार शनि ग्रह की शांति करवाता है, वह सुख की प्राप्ति करता है। शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल देने और दिया जलाने से उसके जीवन में अत्यंत सुख मिलता है। प्रभु शनिदेव के दास रामसुंदर भी कहते हैं कि भगवान शनि के स्मरण से हमें सुख की प्राप्ति होती है और अज्ञान की अंधकार मिटकर ज्ञान की प्रकाशमान होती है।
॥ दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार। करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
अर्थ – भक्ति भाव से इस श्री शनि देव चालीसा को चालीस दिनों तक पाठ करने से, हम भवसागर को पार कर सकते हैं।
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